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Thursday 13 May 2021

अगर ये ज़िंदगी

अगर ये ज़िंदगी

फिर से जीने का मौक़ा मिले तो,

पढ़ना चाहूँगा इतिहास विज्ञान की जगह

गणित कि जगह दोस्ती करूँगा साहित्य से

सीखना चाहूँगा दुनिया कि तमाम भाषाए

घूमना चाहूँगा सारी दुनिया

रहना चाहूँगा पहाड़ की चोटी पे

और लिखूँगा कुछ कवितायें प्रेम की 

Wednesday 16 September 2020

यादें

 

काश की पल फिर आये

कुछ तुम जी लो, कुछ मै जी लू !

वो  मधुर  सुहाने  चंचल    पल

कुछ तुम चुन लो, कुछ मै चुन लू !!

फिर वही सुहाने मौसम हो,

फिर वही गीत मनभावन हो !

कुछ कस्मे हो, कुछ वादे हो,

कुछ तुम बोलो , कुछ मै  बोलू!!

मै वही राग फिर से छेडू ,

तुम वही गीत फिर से गाओं !

तुम रूठो फिर बिन बातो पे,

वो तेरे भोलेपन पे मै फिर से जी लू फिर से मर लू

फिर वो ही चाँद फलक पे हो ,

फिर वही बेताबी सीने  में !

तुम हँसती रहो बस हँसती रहो ,

मै तुम्हे देख खुश होता रहू !!

फिर बारिश कि कुछ बुँदे हो,

सावन का पुरवा झोका हो !

हाथो में तेरा हाथ लिए ,

कुछ तुम भिगो, कुछ मै भीगू !!

काश की पल फिर आये

कुछ  तुम जी लो, कुछ मै जी लू

ये प्यार ही है

 

जो बात कभी तुमसे कही,

जो झूठ सदा खुद से बोला !

जो बात मेरे दिल में ही रही,

जो बात जुबा पे ना आई !!

ख्वाबो में भी उलझन सी रही ,

हम डरते रहे और चुप ही रहे !

जब जब सोचा तेरी ओर बढे,

इक झिझक थी जो बढती ही रही !!

इक आश है जो मिटती ही नहीं,

एक दर्द है जो घटता ही नहीं !

इक पल में सदिया जीते है,

जब जब तेरे संग होते है !!

तेरे आने की बातो से ,

हर ओर उजाला होता है !

जब तुम मेरे संग होते हो,

सब कुछ अच्छा ही होता है !!

इक डर है तुमको खोने का,

इसलिए सदा चुप रहते है !

शब्दों की मायानगरी में ,

ख्वाबो के महल हम बुनते है !!

इस ख्वाबो वाली दुनिया में,

बस मेरी मर्जी चलती है !

हर ओर तुम्हारी बाते है,

हर ओर तुम्हारे चर्चे है !!

लेकिन ये बस इक ख्वाब ही है,

कुछ बिनबोले जजबात ही है !

अब कैसे तुमको बतलाये,

ये प्यार ही है, ये प्यार ही है !!

Monday 14 September 2020

मीडिया ट्रायल

   मीडिया ट्रायल ऐसा शब्द है जो आपने बहुत बार सुना होगा, लेकिन कभी आपने इस शब्द के मतलब जानने की कोाशिश की और समाज पे इसका प्रभाव क्या है? किसी की ज़िन्दगी में इसका कितना असर पड़ता है और वो न्याय को कितना प्रभावित करता है।  


 अगर आपके पास टीवी है, माफ़ कीजिये वो तो सबके पास है। अगर आप शाम को टीवी देखते है, वो भी न्यूज़ तो जो नाम आपने पिछले कुछ दिन में सबसे ज्यादा सुना होगा वो है रिया चक्रवर्ती। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को अपने घर में आत्महत्या कर ली, रिया उनकी प्रेमिका थी और 6 दिन  पहले तक उनके साथ रहती थी।  शुरुवाती खबरों की माने तो सुशांत फिल्म इंडस्ट्री में अपने खिलाब गुटबाजी और फिल्मो में काम न मिलने की वजह से डिप्रेशन में थे. सुशांत की मौत के लगभग 1 महीने से ज्यादा टाइम के  बाद सुशांत  के परिवार ने रिया के ऊपर केस किया , पैसे की धोखाधड़ी और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगते हुए।  सुशांत की मौत के बाद से ही मिडिया इस केस को सनसनीखेज बनाने में जुटा हुवा था, हर बात की बिना सत्यता जाचे उसे ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह पेस करने की जल्दी में मिडिया के लोग रिया के हर गतिविधि में अपराध ढूढ़ने में लग गए , रिया की पर्सनल चैट के स्क्रीन शॉट मिडिया में घूमने लगे , रिया कॉल  रिकॉर्डिंग  और कॉल लिस्ट हर न्यूज़ चैनल के पास थी, किसी का  पर्सनल डाटा एक्सेस करना गैरकानूनी है इतना मै जनता हूँ, इन्होने  ने कैसे किया पता नहीं। हालत यह है की जो लोग 14 जून के पहले रिया का नाम नहीं जानते है वो भी कहते है की, 'रिया बुरी लड़की है '. कितनी आसनी से लोग यह कह देते है की रिया बुरी लड़की है , बिना सच जाने।  जिस तरह से मिडिया रिया पे अटैक करती है, जिस भाषा का इस्तेमाल करती है वह किसी भी सभ्य समाज की भाषा नहीं है. मिडिया ने  पहले ही रिया को दोषी घोषित कर दिया कर उसका ट्रायल शुरू कर दिया और आरोप लगाने शुरू कर दिया।  कहते है की कोई चीज बार बार सुनाने से हम भी वैसा सोचने लगते है और मिडिया यही चाहता है अधिकतर लोग रिया को अपराधी मानाने लगे है बिना अपराध सिद्ध हुए. हलाकि अभी केस सीबीआई के पास है , कुछ दिन पहले रिया गिरफ्तार भी हो चुकी है किसी और केस में जो सुशांत के परिवार ने आरोप लगाया है उसमे नहीं। रिया पे ड्रग्स खरीदने और इस्तेमाल करने का आरोप है, हलाकि ज़िंदा होते तो सुशांत भी इस आरोप पे जेल में होते।  वैसे यह पहली बार नहीं है जब मिडिया ने ट्रायल के जरिये न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की है। 

  बात 1958  की है, देश में टीवी नहीं था , रेडिओ अमीर लोगो के पास होता था, न्यूज़ पेपर बड़े शहरो में ही था , छोटे शहरो और कस्बो तक उनकी पहुंच नहीं थी. उस समय देश का पहला मिडिया ट्रायल हुवा, केस था K. M. Nanavati vs State of  Maharshtra . 1 नवंबर 1958 को भारतीय नौसेना के कमांडर कावस नानावती ने अपनी पत्नी सिल्विया के प्रेमी प्रेम आहूजा की अपने सर्विस गन से गोली मारकर हत्या कर दी और खुद को पोलिस के हवाले कर दिया. कावस पारसी थे और प्रेम सिंधी दोनों कम्यूनटी आमने सामने आ गयी , पारसी कावस को बचाना थे और सिंधी चाहते थे फांसी।  भारतीय नौसेना भी कावस को बचाना चाहती थी , खबरे यह भी है की खुद रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन , जज R. M. मिश्रा  को फ़ोन करके केस के बारे में पूछते थे , पंडित नेहरू तक केस पे नज़र रखे हुए थे।  कावस के वकील थे कार्ल खाण्डलावला और  पब्लिक प्रोसिक्यूटर थे चंदू  त्रिवेदी हलाकि उनको सपोर्ट करने के लिये  प्रेम की बहन ने राम जेठमलानी की सेवाएं ली थी।  पारसी पत्रकार रुसी करंजिया ने अपने साप्ताहिक अख़बार ब्लिट्ज में प्रेम का चारित्रिक हनन शुरू किया , पूरे शाहर दो हिस्सों में बटा  था, यहाँ तक की कावस को सजा होगी या नहीं इस बात पर सट्टे लगने लगे थे।  मिडिया की खबर का इतना असर था की ज्यूरी ( उस समाय ज्यूरी थी, 1973 में आखिरी बार पब्लिक ज्यूरी बंगाल में बैठी थी , अभी भी पारसी में पारिवारिक  मामले के लिए ज्यूरी का प्रावधान है )  भी उससे प्रभावित थी और दो साल के लम्बे ट्रायल के बाद 11 नवंबर को अपने दिए फैसले में 8-1 से NOT GUILTY कहा, उस केस में जो पोलिस की भाषा में ओपन एंड शट केस था।  खैर जज ने नियमो को कानून का ध्यान रखा और कावस को अपराधी करार दिया। कहानी यहाँ ख़तम नहीं होती, सड़को पे  लोगो में आक्रोश था लोग कावस को जेल के बहार चाहते थे, पंडित नेहरू की बहन विजयलक्मी पंडित जो उस समय महाराष्ट्र की राज्यपाल थी , पंडित जी सलाह पे और जनता की भावनावो का ध्यान रखते हुए कावस को माफ़ कर दिया।  खैर कावस को नौकरी छोड़नी पड़ी, साथ में कावस ने देश भी छोड़ दिया ,हमेशा के लिए पत्नी सिल्विया और बच्चो के साथ कनाडा  चले गए और 2003 में अपने मरने तक वही रहे।  इस केस में दो फिल्मे भी बनी है जो हकीकत से काफी दूर है , 1973  में अचानक और 2016 में रुश्तम। एक वेब सीरीज भी है जो कुछ हद तक आस पास है।  यह देश का पहला मिडिया ट्रायल था जो संफल रहा।  

    समय बिता नेहरूजी के बाद देश ने 4  प्रधानमत्री और देखे , इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद जबरदस्ती राजनीति में लाये  गए राजीव गाँधी देश के प्रधानमंत्री थे।  लेकिन कहानी काफी पहले शुरू हो चुकी  थी, 1978 में इंदौर की शाहबानो को उनके पति ने तलाक़ दे दिया , तलाक़ के बाद जब बात पैसे की आयी तो उनके पति ने पैसे देने से मना कर दिया यह बोलकर की मेरे पास पैसे  है ही नहीं, शाहबानो 1981 में कोर्ट में गयी, 4 साल लगे केस हाई कोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पंहुचा जहा कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरक़रार रखते हुए शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया. केस के बारे मिडिया में खूब बाते चल रही थी , मुस्लिम कम्युनिटी इस फैसले से नाराज़ थी, राजीव गाँधी 1  साल पहले ही प्रधानमंत्री बने थे वो विवाद नहीं चाहते थे न ही मुसलमानो को नाराज़ करना चाहते थे उन्होंने संसद में नया क़ानून बनाकर कोर्ट के फैसले को बदल दिया।  इस केस में भी मिडिया का बहुत बड़ा हाथ था, तब तक टीवी भी आ चुका  था और दिन में 2  बार समाचार  भी आता था , रेडिओ गाओं की चौपाल तक और अख़बार कस्बो की चाय की दुकान तक पहुंच चुका था. 

   फिर आया 1990 , देश की राजनीती में मंडल और कमंडल प्रवेश कर चूका था ,  नौजवान भी अख़बार पढ़ने लगा था, फिल्मो के बारे सप्ताहिक  रंगीन पन्ने  अलग से आने लगे थे। समाचार दिन में तीन बार दूरदर्शन पे आने लगा था, इंटरनेट और 24 घण्टे वाले न्यूज़ चैनल अभी नहीं आये थे।  फिल्म अभिनेत्री रेखा ने सबको  चौकते हुए अचनाक मुंबई के एक मंदिर में दिल्ली के मुकेश अग्रवाल से शादी कर ली, हलाकि 6 महीने बाद ही वो अलग रहने लगी , और शादी के लगभग 7 महीने बाद 02 अक्टूबर  को मुकेश अग्रवाल ने अपने दिल्ली के घर में रेखा के दुपट्टे से फांसी लगाकर जान दे दी।  फिर शुरू हुवा मिडिया ट्रायल , जो कहानी आज रिया और सुशांत की है वही तब रेखा और मुकेश की थी , मुकेश के परिवार ने वही आरोप लगते रेखा पर और फिल्म इंडस्ट्री के लोगो रेखा की जमकर आलोचना की ,पूरे देश में रेखा के खिलाफ माहौल था।  रेखा को शादी के बाद पता चला था की मुकेश डिप्रेशन में है, और उसका इलाज चल रहा है डिप्रेशन के लिए। 



 पूरे देश में witchhunt चला, देशवासीयों ने रेखा को डायन बताया, आदमी  मारने वाली डायन !

मुकेश की माँ मीडिया के सामने रोइ और बोली के "वो डायन मेरे बेटे को खा गयी ! भगवान् उसे कभी माफ़ नहीं करेगा। 

मुकेश के भाई अनिल ने कहा की "मेरा भाई रेखा से प्यार करता था, उसके लिए वो जान भी दे सकता था, और वो बर्दाश्त नहीं कर पाया जो रेखा उसके साथ कर रही थी, और अब वो क्या चाहती है, क्या उसकी नज़र हमारी दौलत पर है ?"

सुभाष घई ने कहा था की "रेखा ने पूरी फिल्म इंडस्ट्री के चेहरे पर कालिख पोत दी है, जोकि आसानी से नहीं धुलेगी, और मुझे लगता है की इसके बाद कोई भी इज़्ज़तदार परिवार चार बार सोचेगा किसी भी एक्ट्रेस को अपने परिवार की बहु बनाने से पहले !और रेखा का भी करियर ख़त्म ही समझो, कोई भी समझदार डायरेक्टर उसे अपनी फिल्मों में नहीं लेगा, क्यूंकि ऑडियंस अब कभी रेखा को 'भारत की नारी' या 'इन्साफ की देवी' के तौर पर स्वीकार नहीं करेगी !"

अनुपम खेर ने कहा था की "रेखा अब एक राष्ट्रिय खलनायिका बन चुकी है, प्रोफेशनली भी और पर्सनली भी, और मुझे लगता है की उसका करियर भी ख़त्म ही है, साथ ही मुझे समझ नहीं आ रहा की मैं उसके साथ क्या करूँगा अगर वो मेरे सामने आ गयी तो !"

 मीडिया ने इस सेंसेशनल स्टोरी को हाथों हाथ लिया और एक से बढ़कर एक रेखा का चरित्रहनन करने वाली हैडलाइन चलाई, 

#शोटाइम ने नवंबर 1990 में हैडलाइन दी "The Black Widow" यानी के "काली विधवा",

#सिनेब्लिट्ज़ ने उसी महीने हैडलाइन दी "The Macabre Truth behind Mukesh’s Suicide" यानी के "मुकेश की आत्महत्या के पीछे का भयानक सच",

30 साल हो गए हैं उस सब को, ना तो रेखा का कोई दोष निकला, ना ही मुकेश की ह्त्या का कोई एंगल, लेकिन रेखा को समाज ने कम से कम 3-4 साल तक इस कदर परेशान रखा के वो खुद डिप्रेशन में आ गयी थी। 

 बाद में मुकेश के एक व्यवसाई पार्टनर ने ये भी खुलासा किया के मुकेश का खुद का स्टार्ट किया हुआ बिज़नेस भी उस समय नुक्सान में चल रहा था, और उसने इस से पहले भी आत्महत्या की कोशिशे की थी !

  अब हम 2020  में है , मिडिया बहुत ही ताकतवर हो चूका है , 24  घण्टे वाले न्यूज़ चैनल है, इंटरनेट है सोसल मिडिया है।  किसी के बारे बिना सत्यता जाचे कुछ भी लिख देना बहुत आसान हो  चूका है।  अगर मिडिया अपने जिम्मेदारी नही निभाता तो हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।  हमें सच खुद ढूढ़ना होगा, कम से कम झूठ फैलाने से तो बचना ही होगा।  


PS. Thanks to Wikipedia and  Ritika Bhattachrya( facebook post)

अगर ये ज़िंदगी

अगर   ये   ज़िंदगी फिर   से   जीने   का   मौक़ा   मिले   तो , पढ़ना   चाहूँगा   इतिहास   विज्ञान   की   जगह गणित   कि   जगह   दोस्ती   करूँग...